
हकीकत आज़ादी की।
हमारे देश को आज़ादी पाए 65 साल हो चुके है लेकिन जब भी मै अपने देश का इतिहास देखता हूँ तो मुझे वो कुछ अधुरा सा लगता है। क्या गाँधी जी और उनके विचारो के वजह से हमे आज़ादी मिली या फिर मेहनत किसी और की फल किसी और को आखिर क्या है हकीकत आज़ादी की?
हम आज़ादी से सम्बंधित जब भी कोई इतिहास की किताब पढ़ते है, तो हम पाते है की हमारी आज़ादी में गाँधीवादी विचाधारा का बड़ा योगदान है। क्या सच में गाँधी जी का इतना बड़ा प्रभाव पड़ा की हमे 100 साल की लम्बी लड़ाई में गाँधी जी और उनके सहयोगियों की वजह से आज़ादी मिली ?

इसमें कितनी हकीकत है मै अपने नजरिये से दिखाने की कोशिश करूँगा।
हमारी एतिहासिक पुस्तको में आज़ादी से सम्बंधित कुछ भी पढ़ते है तो उसमे गाँधी जी का ज़िक्र सबसे ज्यादा होता है मानो देश की आज़ादी में सारा योगदान गाँधी जी ने दिया था।
मेरा मानना है की हमारी आज़ादी में सबसे महत्वपूर्ण योगदान झाँसी की लक्ष्मी बाई , मंगल पण्डे , बल गंगाधर तिलक , लाला लाजपत राय जैसे क्रांतिकारियों का रहा है। जिन्होंने हमे आज़ादी की उम्मीद दिखाई तथा आज़ादी को हासिल करने का तरीका सिखाया और इन्ही लोगो के पथ पर आगे चल कर आज़ादी दिलाने में चन्द्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह , सुखदेव , राजगुरु , सुभाष चन्द्र बॉस जैसे महान लोगो बहुत बड़ा योगदान रहा है और दुःख की बात ये है की सबसे ज्यादा भेद भाव इनके साथ हुआ।
हकीकत यह है की आज़ादी में सबसे ज्यादा योगदान क्रांतिकारियों का रहा है। उन्होंने आज़ादी के लिए जो रास्ते अपनाये वह उनकी मज़बूरी थी लेकिन वो सब जरुरी था। अहिंसावादी होना एक अच्छी बात है समाज में शांति बनाये रखने तथा भाईचारा बढ़ाने में अहिंसावाद का बहुत बड़ा योगदान है और ये होना भी चाहिए लेकिन कई बार इस विचारधारा से कार्य नहीं चलता तो क्रांतिकारी बनना पड़ता है।
मैंने कही एक लेख पढ़ा था जिसमे लिखा था की आज़ादी का असली कारण गाँधी जी नहीं थे। आज़ादी का असली कारण भगत सिंह, चन्द्र शेखर, सुभाष चन्द्र बॉस थे।
उस ब्रिटिश लेख में लिखा था अगर सभी गाँधीवादी विचारधारा पर चलते तो हम भारत पर 2-3 सौ साल और राज करते।
उदहारण के लिए गाँधी जी कहते है की आप निवेदन करके दुश्मन का ह्रदय परिवर्तित कर सकते हो और अगर कोई तुम्हारे एक गाल पर थप्पड़ मारे तो दूसरा गाल आगे कर दो। यह किस हद तक ठीक है मैं बताता हूँ।
मै आपके घर में जबरदस्ती आ कर रह रहा हूँ और मुझे हर प्रकार की सुविधा मिल रही है। मै आपका घर कभी नहीं छोडूंगा और आप मुझसे विनती करते है तब मै आप के गाल पर थप्पड़ मार देता हूँ आप है की दूसरा गाल आगे कर देते है । जरा सोचिये क्या मै आपके घर से जाऊंगा ।
वही दूसरी तरफ आप मुझसे 3-4 बार निवेदन करते है की आप हमारे घर से चले जाये और मै आपकी नहीं सुनता तथा आपका शोषण किये जा रहा हूँ ।अंत में आप मेरे खिलाफ बगावती तेवर अपना लेते है तब मुझे न चाहते हुए भी आपका घर छोड़ना पड़ेगा। ये विचार भगत सिंह, चन्द्र शेखर, सुभाष चन्द्र बॉस जैसे नेताओ के थे। मेरा भी यही मानना है की यही वो विचारधारा थी । जो हमे आज़ादी की तरफ ले आयी।
मै ज्यादा समय बर्बाद ना करके गाँधीवादी विचारधारा का एक उदहारण प्रस्तुत करता हूँ। अभी हाल ही के दिनों में आप सबने श्री अन्ना हजारे और बाबा रामदेव को गाँधी जी के कदमो पे चलते देखा । उन्होंने पूर्ण रूप से गाँधीवादी सिधान्तो का पालन करते हुए अनसन किया अपना विरोध जताया तथा सरकार को मनाने का हर संभव प्रयास किया लेकिन उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगी।
मेरा ये कहना है की जब गाँधीवादी विचारधारा से हमारे अपनों (देश के नेताओ) को कोई फर्क नहीं पड़ा तो वो तो गैर थे।
अब ये सोचने की बात है की आखिर हमारे देश की आज़ादी की हकीकत क्या है?
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