
10 राज्यों के 67% मरीजों में नहीं दिखे कोरोना के लक्षण
न फीवर था, सर्दी, खांसी और न ही सांस लेने में दिक्कत…। सब कुछ बिल्कुल नॉर्मल था, लेकिन जब जांच कराया तो पता चला कि कोरोना है। ऐसे लोग अचंभित और परेशान भी हैं। दिल्ली में इस समय अधिकांश ऐसे ही मामले दिख रहे हैं। जिस वायरस का इतना खौफ है, उससे संक्रमित होने के बावजूद उसके लक्षण नहीं दिखाई दे रहे हैं।

भारत में कोरोना के एसिम्पटोमैटिक मरीजों की बढ़ती संख्या से प्रशासन की चिंताएं बढ़ गई हैं। देश के दस प्रमुख राज्यों में अब तक मिले कुल संक्रमितों में से औसतन 67 फीसदी ऐसे हैं, जिनकी कोरोना जांच की रिपोर्ट तो पॉजिटिव आई, लेकिन उनमें वायरस के कोई लक्षण नहीं थे। विशेषज्ञों का कहना है कि वायरस के ये छिपे वाहक अनजाने में बड़े पैमाने पर अपने संपर्क में आने वाले लोगों में संक्रमण फैला रहे हैं। इसलिए रैपिड या पूल जांच के जरिए इनकी पहचान करना और आइसोलेशन में भेजना बेहद जरूरी है।
इसलिए नहीं दिखते वायरस के लक्षण : स्वास्थ्य विशेषज्ञों की मानें तो कोरोना से संक्रमित मरीज की उम्र, प्रतिरोधक क्षमता और वायरल लोड (खून में वायरस की संख्या) तय करता है कि उसमें वायरस के लक्षण दिखाई देंगे या नहीं। अगर मरीज की रोग-प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है और उसका वायरल लोड भी कम है तो संभव है कि जांच होने तक पता ही न चल पाए कि संबंधित शख्स कोरोना का शिकार है।
कम उम्र के एसिम्पटोमैटिक मरीज ज्यादा : बेंगलुरु स्थित राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ चेस्ट डिजीजेज के निदेशक डॉ. सी नागराज कहते हैं, ज्यादातर एसिम्पटोमैटिक मरीजों की उम्र 20 से 45 साल के बीच है। कम उम्र में प्रतिरोधक कोशिकाओं की अधिक मौजूदगी उनमें लक्षण नहीं उभरने की मुख्य वजह हो सकती है। यही नहीं, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली दवाएं लेने वाले बुजुर्गों में भी शुरुआती स्तर में लक्षण नहीं दिखते।
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