
सरकार प्रवासी मजदूर को फिर से परिभाषित करने की तैयारी कर रही है
सरकार 41 सालों बाद ‘प्रवासी मजदूर’ को फिर से परिभाषित करने की तैयारी कर रही है। सरकार अब प्रवासी मजदूरों को फिर से परिभाषित कर उनके पंजीकरण की योजना बना रही है ताकि उन्हें सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं के दायरे में लाया जाए।

केंद्रीय श्रम मंत्रालय जल्द ही कैबिनेट को इस बारे में विस्तृत प्रस्ताव भेजने वाला है। केंद्र सरकार की योजना है कि प्रस्तावित कानून को इस साल के आखिर तक लागू कर दिया जाए।
मौजूदा प्रवासी संकट ने सिस्टम की कमियों को भी उजागर किया है। प्रवासी मजदूरों का कोई एकीकृत रेकॉर्ड तक नहीं है। इंटर-स्टेट माइग्रैंट वर्कमेन ऐक्ट 1979 भी सिर्फ उन संस्थानों या कॉन्ट्रैक्टरों पर लागू होता है जहां 5 या उससे ज्यादा इंटर-स्टेट प्रवासी मजदूर काम करते हैं।
अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि प्रस्तावित कानून में ऐसे प्रावधान किए जाएंगे जिससे प्रवासी मजदूरों को देश में कहीं भी उनके लिए सरकार की तरफ से तय किए बेनिफिट मिलें यानी बेनिफिट पोर्टेबिलिटी का लाभ मिलेगा। सबसे बड़ी बात यह है कि प्रवासी मजदूरों को साल में एक बार अपने घर जाने के लिए किराया मिलने का हकदार बनाया जाएगा।
प्रस्तावित योजना का एक अहम हिस्सा असंगठित क्षेत्र के वर्करों का डेटाबेस बनाना है। ऐसे मजदूरों को एक खास तरह की पहचान संख्या दी जाएगी जिसे अनऑर्गनाइज्ड वर्कर आइडेंटिफिकेशन नंबर (U-WIN) नाम से जाना जाएगा। इस बारे में 2008 में ही प्रस्ताव तैयार किया गया था लेकिन बात आगे नहीं बढ़ पाई थी। सरकार प्रवासी मजदूरों को पेंशन और हेल्थकेयर जैसे सामाजिक सुरक्षा के लाभ के दायरे में लाने की तैयारी कर रही है।
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