
आरक्षण
आरक्षण का कानून बाबा साहेब भीम राओ आंबेडकर ने उस समय की स्थिति के हिसाब से बहुत सोच समझ कर समाज के कल्याण के लिये लिखा था इसमें मैं उनकी सोच पर कोई शक नही कर सकता । जैसा की हमने पढ़ा है की आरक्षण का कानून सिर्फ 10 साल के लिए था इससे ये पता चलता है की बाबा साहेब कितने बड़े दूरदर्शी थे । लेकिन इस कानून की धज्जियाँ उड़ाई गयी 10 साल बाद भी इसको बनाये रख कर क्योकि आरक्षण ही एक ऐसा शब्द था जो सबसे बड़ा वोट बैंक था । अब आरक्षण एक शब्द न हो कर एक नीति बन गया फुट डालो और शासन करो । वैसे तो आरक्षण का निर्माण समाज में समानता लाने के लिए हुआ था लेकिंन कानून बनाने वालो को भी नहीं पता था की यही कानून समाज को बाँट देगा ।
सबसे पहले आप सब ये जानिए की मै क्या सोचता हूँ आरक्षण बारे में , मेरे हिसाब से आरक्षण का मतलब है फुट डालो और शासन करो इंग्लिश में इसे बोलते है (Divide and Rule). अब जानिए ये नीति आई कैसे, भारत के आजाद होने तक कांग्रेस पार्टी अंग्रेजो से ये सिख चुकी थी की फुट डालो और शासन करो की नीति कितनी कामयाब है । अग्रेजो ने इस नीति के साथ भारत में 100 वर्ष से अधिक समय भारत में और बिता लिया ।
आज़ादी के 10 साल तक कांग्रेस सत्ता की मलाई आज़ादी के नाम पर खाती रही बाद में इन्हे लगा की लोग धीरे-धीरे ये भूल जायेंगे तब वोट कैसे पाएंगे फिर इन्हे याद आया आरक्षण के कानून का जो सिर्फ 10 साल के लिए बना था । जिस समय ये कानून बना था उस समय उच्च वर्ग ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया यह सब समाज में एक अच्छे स्थान पर थे पर अन्य जातियाँ अशिक्षा और गरीबी की वजह से पीछे थी । इन सभी को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए आरक्षण का कानून बना था । लेकिन 10साल बाद इस कानून का दुरुपयोग होने वाला था, इसे बनाये रख कर अब ये कानून नहीं रहा अब ये एक पार्टी की विचारधारा हो गया । अब आरक्षण समाज में समानता लाने नहीं समाज को बांटने वाला कानून हो गया था ।

आरक्षण शब्द नेताओं के लिए वरदान साबित हुआ इस शब्द के इस्तेमाल से भारत के कई टुकड़े हुए, जिसमे कुछ धर्म के नाम, कुछ जात के नाम पर फिर जातियों में भी और कुछ टुकड़े किये गए क्योकि लोग जितना बटेंगे सत्ता उतनी लम्बी चलेगी ।आज हमारे देश में जो स्थिति बनी हुई है ये नेताओ के लालच की वजह से है, आरक्षण के नाम पर धरना, लूट-पाट गुंडागर्दी हो रही है, सबसे बड़ी बात तो यह है की ये जो लोग चक्का जाम करते है इनमे कोई सरीफ आदमी नहीं होता क्योकि उस बेचारे को तो अपनी जिम्मदारियो से ही फुर्सत नहीं मिलती वो क्या तोड़-फोड़ करेगा । इस प्रकार के आंदोलन तो एक नंबर के गुंडे, छिछोरे , टपोरी जिनकी घर में कोई इज्जत नहीं होती ये वो सड़क छाप लोग करते है । क्योकि अगर सरीफ लोगो का धारना होता तो वो दिल्ली में हुई अन्ना हज़ारे के धरने जैसा होता ।
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